Sunday, June 29, 2008

...REH GAYE

KEH HUM SAKE NAHIN, AUR TUMNE BHI NA SAMJHA;
PYAAR HUM AANKHON SE HI, JATATE REH GAYE !
HAR BAAT AAPKI HUMNE, SAR AANKHON PAR RAKHI;
AUR AAP HUMKO YUN HI, SATATE REH GAYE !

Kya tha tumhare man mein, tumne bhi na jaana ;
Qayamat ka din tha wo, jab hum izhar kar baithe !
Yaadon aur Khwabon mein, ek aks reh gaya bas ;
Aap yun chale gaye , ki hum bhulaate reh gaye !

Aaj aap laute hain fir se, jaane kya sochkar ;
yeh khayal humko raat bhar, jagate reh gaye !
Ab door hi rehna hai, azad panchhi hain hum;
bekaar hi wo aaj humko ,  manate reh gaye !




Tuesday, January 22, 2008

OH MY LIFE...!

Oh my life , what a bless you are !
Oh my life , what a mess you are !

i love u for the glorious days,

which you have always given me;

i condemn you for the miseries,

with which you have stricken me !

i 've loved your charms,
i 've felt your calms;
you made me think,
in the time of a blink;
the laborious days,
the assiduous nights,
n then the glory,
reaching ecstatic heights.

but everything 's gone in the eddy of life,
i've lost my tranquillizing,intoxicating fife.
but glory will have to return to me,
someday again i 'll make merry in glee.
oh dear AMIT have faith in you,
this is what LIFE is-with ups n downs
when i've accepted its loving smiles
why should i be afraid of its frowns.
it is often darkest before the night's over,
then comes DAY-with its shining crowns

Wednesday, January 16, 2008

मेरी खर्चीली GIRLFRIEND

तुझे date पर जब ले जाता हूँ
तू band मेरा बजाती है ,
मैं सादा पानी पीता हूँ
तू mushroom pizza खाती है ।

लंबे -चौड़े से menu की
हर चीज़ तुझको भाती है ,
तेरे खाने का bill देख-देख
मेरी नब्ज़ डूबती जाती है ।

Movie का कभी plan बनाऊँ तो
बस multiplex ही चाहती है ,
और interval में भर पेट ज़ालिम
महँगा pop-corn खाती है ।

टहलने को जब भी कहीं निकलें
सीधे mall में ले जाती है ,
जी भर शॉपिंग करती है
और मेरा माल उड़ाती है ।

छोड़ भी नहीं सकता मैं तुझको
दोस्तों में धाक जो जम जाती है ,
अब जैसे -तैसे काट रहा हूँ
बस किसी तरह कट जाती है ।

जान तो जब फँस ही गई है
अब किसी तरह तो निभानी है ,
पर मैं अकेला नहीं हूँ यारों
तुम सबकी भी यही कहानी है । ।

Tuesday, January 15, 2008

तेरी यादों के दम पर

मुद्दतों से तेरे दीदार की
इनायत ना हुई हम पर
फ़क़त रूह बाक़ी है जिस्म में
तेरी यादों के दम पर ।

ऐ साकी

ऐ साकी हमको इश्क का
क्यूँ ज़हर पिला दिया
मर रहे थे चैन से
फिर से क्यूँ जिला दिया


बस पीने की ख्वाहिश थी
क्यूँ इतनी रहमत कर दी
माँगा था एक घूँट बस
क्यूँ सागर पिला दिया ।


जो कहा तेरी नज़रों ने
बस वही तो कर बैठे
जब आदत हो गयी पीने की
क्यूँ मयखाना छुड़ा दिया ।

पीते रहे ज़हर बेहिसाब
और उफ़ तक भी ना की
हर जाम में क्यूँ इतना
तूने प्यार मिला दिया । ।

आज भी ...

आज भी याद करता हूँ मैं
इंतज़ार की रातों को
क्या तुम भी भूल सकोगे
उन बहकी -बहकी बातों को ?

तुझे देख दिन होता शुरू
दिल की धड़कन बढ़ जाती
आँखों से हँसकर जो देखा
जगाया दिल के जज़्बातों को ।

आज फिर याद करता हूँ मैं
वो हरपल हँसती आँखें तेरी
और उनमें डूबकर किये गए
साथ जीने के वादों को ।

तेरी तस्वीर से ही सही
दिल की बातें कह लेता था
खो गयी वो भी जाने कहाँ
अब किससे करूँ फरियादों को ?

हाथ बढ़ाकर छुआ जो दिल को
कितने अरमाँ जगा दिए
खूँ के आँसू रोया ये दिल
जब तोड़ा तूने नातों को ।

चले गए यार तुम तो
लगाकर आग पानी में
मैं इस दिल के अश्कों से
जलाता रहा बरसातों को । ।

Friday, December 7, 2007

वो चंद लम्हे...

तू चाहे हाँ कर , चाहे तू ना कर
रखूँगा मैं अपने दिल में सजाकर
वो चंद लम्हे ...

तू ही बता दे कैसे
बयाँ करूँ मैं हाले दिल
उलझन में ये दिल है
दिल में बड़ी मुश्किल
मैं तो चाहूँ यही बस
तुम छू लो हाथ बढ़ाकर
वो चंद लम्हे ...

आज बैठ फिर तन्हाई में
सोचता हूँ मैं गुमसुम
काश आज फिर क़यामत हो
और मिल जाओ मुझे तुम
डरता हूँ , लहरें वक़्त की
ले जाएँ न बहाकर ,
वो चंद लम्हे ....

मेरी मोहब्बत को तुम
अब और ना तड़पाओ
या तो पकड़ लो हाथ मेरा
या फिर चले जाओ
लेकिन ये भूल ना जाना ,
जाना मुझे लौटाकर
वो चंद लम्हे ...


चला जाऊँगा दूर मैं तुमसे
लौटकर फिर नहीं आऊंगा
लेकिन तुम भी ये जान लो
भूल तुम्हें नहीं पाऊँगा,
ले जाऊँगा आँसुओं कि तरह
इन पलकों में छिपाकर
वो चंद लम्हे ...


तेरी आँखें

कभी बंद पलकों में आँसू दबाये,
कभी सबसे राज़ दिल के छिपाये-
तेरी आँखें ...

काली रात सी तेरी गहरी स्याह आँखें
जब तू ना बोले तो करतीं हैं बातें

आँखों से ही कभी जब हँस देती है तू
दीवाना होकर तब हरपाल मैं देखूँ
तेरी आँखें ...
कभी इनमें ग़म का दरिया समाया है
इन्हें शरारत करते पाया है
ख़ुशी कभी छलकने को होती है बेताब
कभी हैरानी का सागर, कभी हैं आफ़ताब
तेरी ऑंखें ...
आँखों से ही कभी जब छू लेटी हो मुझे
तो रात भर नींद फिर आती नहीं मुझे
बिना पूछे जादू चलातीं हैं पल पल
मदहोश मुझको बनातीं हैं हर पल
तेरी आँखें...

इन आंखों में मैं एक सपना तलाश करता हूँ
तुझमें मैं कोई अपना तलाश करता हूँ
तेरी आँखें देखूँ हर सुबह हर शाम,
एक बार कर दे तू जो मेरे नाम,
तेरी आँखें...


Thursday, December 6, 2007

मैं तुम्हें ...

शर्त जीने कि ये थी कि शिकवा न करें,
शिकवा ही ज़िंदगी हो तो फिर क्या करें...

दो कदम साथ चलने को कोई न मिला,
किससे करूँ शिकवा काहे का गिला.
अब तक यूँ अकेला ही चला आया हूँ
अब भी अकेला ही चला जाऊँगा.
मैं तुम्हें भूल नही पाया हूँ
मैं तुम्हें भूल नही पाऊँगा ........

Tuesday, December 4, 2007

proposal of a science student

what a nice combination you are,
of flesh and epithelium over 206 bones,
what an intoxicatinng look of eyes u have,
with well arranged array of rods and cones.

when i saw you for the first time,
my neurotransmitters got overactive,
my vocal chords forgot synthesizing voice,
and my heart became your captive.

my metabolic rate increases manifolds,
my heart starts pumping more blood,
coordinates of my eyes become fixed on you,
my brain suffers an acetylcholine flood.

people around you look like cactus,
your face is like the corolla of a rose.
when you see me through your contact lenses,
i become like a drunkard in overdose.

how much i want to espouse you,
and form a symbiotic association,
lets share our electrons to get stable,
and attain a noble gas configuration.

Monday, December 3, 2007

raat bhar sota nahin

पल पल दिल से ग़मों के,
कितने तूफाँ गुज़रते हैं,
और उन्हें शिक़ायत है,
कि दर्द हमें होता नहीं.

उनके आगे चेहरे पर,
कभी शिकन तक न आने दी,
तो उन्हें लगता है ,
कि मैं कभी रोता नहीं.

हँस-बोल लेता हूँ मैं गर,
तो ख़ुश मान लेते हैं मुझे,
जाने क्यों उनको लगता है ,
कि मेरा चैन खोता नहीं.

मुझे देख समझते हैं वो,
जी रहा हूँ बेफिक्र मैं.
अब कौन उन्हें समझाए कि,
मैं रात भर सोता नहीं.

Friday, November 30, 2007

मेरे दिल पर ...

तेरी स्वप्निल आँखों तले ,
पलकों में जो सपने पले
कुछ तेरे , तो कुछ मेरे ,
वो बीती यादों कि डेरे

भरी है इस मंज़र में ,
क्यूँ ये खामोशी कूट -कूट ,
चिल्लाकर कहती है तुमसे
मेरी ये चुप्पी अटूट -
जो पल बिताये संग तेरे ,
आकर मुझे क्यूँ घेरें ?
प्रेम -विकल किया तूने मुझे ,
क्या ये पता नहीं तुझे ?
अनजाने से बनकर हम -तुम ,
क्यूँ ये बात छिपाते हैं ?
सपनों को यदि सपना ही रहना है ,
तो क्यूँ हम सपने सजाते हैं ?
जो मेरे दिल में आता है ,
लिख देता हूँ कागज़-ए-स्वप्निल पर ,
जो तेरे दिल में आता हो
आकर लिख दे मेरे दिल पर ...