Thursday, October 5, 2017

हँसी तेरी


हँसी से तेरी खिलखिलाए सारा आलम
तू रूठ जाए तो, रूठ जाते हैं मौसम
देख-देख कर तुझको, आहें भरते हैं लोग
कातिल अदाओं को तुम्हें छुपाना नहीं आता |

तुमको खबर ही नहीं, कितनी कीमती हो तुम
कुछ और बताए गर कोई तो सुनना ही नहीं
कभी तो समझा होता, कितना मरते हैं तुमपे
बस मरते रहते हैं, पर बताना नहीं आता ||

क्या खूब धुन है तेरी, मदहोश हैं सभी
महफ़िल बाँध ली है, तेरी ये दो आँखों ने
बस नज़र उठने गिरने से, मरने को बैठे हैं लोग
एक तुम हो ऐसे ज़ालिम, जिनको सताना नही आता |

इनायत-ए-नज़र बस पड़ जाए, सब हैं इंतज़ार में
क्या क्या नहीं करते, नज़र भर देख लो केवल
आगे-पीछे फिरते हैं हम, यूँ ही आवारा बनके
फकत प्यार भर उनसे, जताना नहीं आता ||