Thursday, December 6, 2007

मैं तुम्हें ...

शर्त जीने कि ये थी कि शिकवा न करें,
शिकवा ही ज़िंदगी हो तो फिर क्या करें...

दो कदम साथ चलने को कोई न मिला,
किससे करूँ शिकवा काहे का गिला.
अब तक यूँ अकेला ही चला आया हूँ
अब भी अकेला ही चला जाऊँगा.
मैं तुम्हें भूल नही पाया हूँ
मैं तुम्हें भूल नही पाऊँगा ........

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