Friday, November 30, 2007

मेरे दिल पर ...

तेरी स्वप्निल आँखों तले ,
पलकों में जो सपने पले
कुछ तेरे , तो कुछ मेरे ,
वो बीती यादों कि डेरे

भरी है इस मंज़र में ,
क्यूँ ये खामोशी कूट -कूट ,
चिल्लाकर कहती है तुमसे
मेरी ये चुप्पी अटूट -
जो पल बिताये संग तेरे ,
आकर मुझे क्यूँ घेरें ?
प्रेम -विकल किया तूने मुझे ,
क्या ये पता नहीं तुझे ?
अनजाने से बनकर हम -तुम ,
क्यूँ ये बात छिपाते हैं ?
सपनों को यदि सपना ही रहना है ,
तो क्यूँ हम सपने सजाते हैं ?
जो मेरे दिल में आता है ,
लिख देता हूँ कागज़-ए-स्वप्निल पर ,
जो तेरे दिल में आता हो
आकर लिख दे मेरे दिल पर ...