Friday, December 7, 2007

तेरी आँखें

कभी बंद पलकों में आँसू दबाये,
कभी सबसे राज़ दिल के छिपाये-
तेरी आँखें ...

काली रात सी तेरी गहरी स्याह आँखें
जब तू ना बोले तो करतीं हैं बातें

आँखों से ही कभी जब हँस देती है तू
दीवाना होकर तब हरपाल मैं देखूँ
तेरी आँखें ...
कभी इनमें ग़म का दरिया समाया है
इन्हें शरारत करते पाया है
ख़ुशी कभी छलकने को होती है बेताब
कभी हैरानी का सागर, कभी हैं आफ़ताब
तेरी ऑंखें ...
आँखों से ही कभी जब छू लेटी हो मुझे
तो रात भर नींद फिर आती नहीं मुझे
बिना पूछे जादू चलातीं हैं पल पल
मदहोश मुझको बनातीं हैं हर पल
तेरी आँखें...

इन आंखों में मैं एक सपना तलाश करता हूँ
तुझमें मैं कोई अपना तलाश करता हूँ
तेरी आँखें देखूँ हर सुबह हर शाम,
एक बार कर दे तू जो मेरे नाम,
तेरी आँखें...


1 comment:

Unknown said...

very nice poem....