ऐ साकी हमको इश्क का
क्यूँ ज़हर पिला दिया
मर रहे थे चैन से
फिर से क्यूँ जिला दिया ।
बस पीने की ख्वाहिश थी
क्यूँ इतनी रहमत कर दी
माँगा था एक घूँट बस
क्यूँ सागर पिला दिया ।
जो कहा तेरी नज़रों ने
बस वही तो कर बैठे
जब आदत हो गयी पीने की
क्यूँ मयखाना छुड़ा दिया ।
पीते रहे ज़हर बेहिसाब
और उफ़ तक भी ना की
हर जाम में क्यूँ इतना
तूने प्यार मिला दिया । ।
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