तू चाहे हाँ कर , चाहे तू ना कर
रखूँगा मैं अपने दिल में सजाकर
वो चंद लम्हे ...
तू ही बता दे कैसे
बयाँ करूँ मैं हाले दिल
उलझन में ये दिल है
दिल में बड़ी मुश्किल
मैं तो चाहूँ यही बस
तुम छू लो हाथ बढ़ाकर
वो चंद लम्हे ...
आज बैठ फिर तन्हाई में
सोचता हूँ मैं गुमसुम
काश आज फिर क़यामत हो
और मिल जाओ मुझे तुम
डरता हूँ , लहरें वक़्त की
ले जाएँ न बहाकर ,
वो चंद लम्हे ....
मेरी मोहब्बत को तुम
अब और ना तड़पाओ
या तो पकड़ लो हाथ मेरा
या फिर चले जाओ
लेकिन ये भूल ना जाना ,
जाना मुझे लौटाकर
वो चंद लम्हे ...
चला जाऊँगा दूर मैं तुमसे
लौटकर फिर नहीं आऊंगा
लेकिन तुम भी ये जान लो
भूल तुम्हें नहीं पाऊँगा,
ले जाऊँगा आँसुओं कि तरह
इन पलकों में छिपाकर
वो चंद लम्हे ...
Friday, December 7, 2007
तेरी आँखें
कभी बंद पलकों में आँसू दबाये,
कभी सबसे राज़ दिल के छिपाये-
तेरी आँखें ...
काली रात सी तेरी गहरी स्याह आँखें
जब तू ना बोले तो करतीं हैं बातें
आँखों से ही कभी जब हँस देती है तू
कभी सबसे राज़ दिल के छिपाये-
तेरी आँखें ...
काली रात सी तेरी गहरी स्याह आँखें
जब तू ना बोले तो करतीं हैं बातें
आँखों से ही कभी जब हँस देती है तू
दीवाना होकर तब हरपाल मैं देखूँ
तेरी आँखें ...
कभी इनमें ग़म का दरिया समाया है
इन्हें शरारत करते पाया है
इन्हें शरारत करते पाया है
ख़ुशी कभी छलकने को होती है बेताब
कभी हैरानी का सागर, कभी हैं आफ़ताब
तेरी ऑंखें ...
आँखों से ही कभी जब छू लेटी हो मुझे
तो रात भर नींद फिर आती नहीं मुझे
बिना पूछे जादू चलातीं हैं पल पल
मदहोश मुझको बनातीं हैं हर पल
तेरी आँखें...
इन आंखों में मैं एक सपना तलाश करता हूँ
तुझमें मैं कोई अपना तलाश करता हूँ
तेरी आँखें देखूँ हर सुबह हर शाम,
एक बार कर दे तू जो मेरे नाम,
तेरी आँखें...
बिना पूछे जादू चलातीं हैं पल पल
मदहोश मुझको बनातीं हैं हर पल
तेरी आँखें...
इन आंखों में मैं एक सपना तलाश करता हूँ
तुझमें मैं कोई अपना तलाश करता हूँ
तेरी आँखें देखूँ हर सुबह हर शाम,
एक बार कर दे तू जो मेरे नाम,
तेरी आँखें...
Thursday, December 6, 2007
मैं तुम्हें ...
शर्त जीने कि ये थी कि शिकवा न करें,
शिकवा ही ज़िंदगी हो तो फिर क्या करें...
दो कदम साथ चलने को कोई न मिला,
किससे करूँ शिकवा काहे का गिला.
अब तक यूँ अकेला ही चला आया हूँ
अब भी अकेला ही चला जाऊँगा.
मैं तुम्हें भूल नही पाया हूँ
मैं तुम्हें भूल नही पाऊँगा ........
शिकवा ही ज़िंदगी हो तो फिर क्या करें...
दो कदम साथ चलने को कोई न मिला,
किससे करूँ शिकवा काहे का गिला.
अब तक यूँ अकेला ही चला आया हूँ
अब भी अकेला ही चला जाऊँगा.
मैं तुम्हें भूल नही पाया हूँ
मैं तुम्हें भूल नही पाऊँगा ........
Tuesday, December 4, 2007
proposal of a science student
what a nice combination you are,
of flesh and epithelium over 206 bones,
what an intoxicatinng look of eyes u have,
with well arranged array of rods and cones.
when i saw you for the first time,
my neurotransmitters got overactive,
my vocal chords forgot synthesizing voice,
and my heart became your captive.
my metabolic rate increases manifolds,
my heart starts pumping more blood,
coordinates of my eyes become fixed on you,
my brain suffers an acetylcholine flood.
people around you look like cactus,
your face is like the corolla of a rose.
when you see me through your contact lenses,
i become like a drunkard in overdose.
how much i want to espouse you,
and form a symbiotic association,
lets share our electrons to get stable,
and attain a noble gas configuration.
of flesh and epithelium over 206 bones,
what an intoxicatinng look of eyes u have,
with well arranged array of rods and cones.
when i saw you for the first time,
my neurotransmitters got overactive,
my vocal chords forgot synthesizing voice,
and my heart became your captive.
my metabolic rate increases manifolds,
my heart starts pumping more blood,
coordinates of my eyes become fixed on you,
my brain suffers an acetylcholine flood.
people around you look like cactus,
your face is like the corolla of a rose.
when you see me through your contact lenses,
i become like a drunkard in overdose.
how much i want to espouse you,
and form a symbiotic association,
lets share our electrons to get stable,
and attain a noble gas configuration.
Monday, December 3, 2007
raat bhar sota nahin
पल पल दिल से ग़मों के,
कितने तूफाँ गुज़रते हैं,
और उन्हें शिक़ायत है,
कि दर्द हमें होता नहीं.
उनके आगे चेहरे पर,
कभी शिकन तक न आने दी,
तो उन्हें लगता है ,
कि मैं कभी रोता नहीं.
हँस-बोल लेता हूँ मैं गर,
तो ख़ुश मान लेते हैं मुझे,
जाने क्यों उनको लगता है ,
कि मेरा चैन खोता नहीं.
मुझे देख समझते हैं वो,
जी रहा हूँ बेफिक्र मैं.
अब कौन उन्हें समझाए कि,
मैं रात भर सोता नहीं.
कितने तूफाँ गुज़रते हैं,
और उन्हें शिक़ायत है,
कि दर्द हमें होता नहीं.
उनके आगे चेहरे पर,
कभी शिकन तक न आने दी,
तो उन्हें लगता है ,
कि मैं कभी रोता नहीं.
हँस-बोल लेता हूँ मैं गर,
तो ख़ुश मान लेते हैं मुझे,
जाने क्यों उनको लगता है ,
कि मेरा चैन खोता नहीं.
मुझे देख समझते हैं वो,
जी रहा हूँ बेफिक्र मैं.
अब कौन उन्हें समझाए कि,
मैं रात भर सोता नहीं.
Friday, November 30, 2007
मेरे दिल पर ...
तेरी स्वप्निल आँखों तले ,
पलकों में जो सपने पले
कुछ तेरे , तो कुछ मेरे ,
वो बीती यादों कि डेरे
भरी है इस मंज़र में ,
क्यूँ ये खामोशी कूट -कूट ,
चिल्लाकर कहती है तुमसे
मेरी ये चुप्पी अटूट -
चिल्लाकर कहती है तुमसे
मेरी ये चुप्पी अटूट -
जो पल बिताये संग तेरे ,
आकर मुझे क्यूँ घेरें ?
प्रेम -विकल किया तूने मुझे ,
क्या ये पता नहीं तुझे ?
अनजाने से बनकर हम -तुम ,
क्यूँ ये बात छिपाते हैं ?
सपनों को यदि सपना ही रहना है ,
तो क्यूँ हम सपने सजाते हैं ?
जो मेरे दिल में आता है ,
लिख देता हूँ कागज़-ए-स्वप्निल पर ,
जो तेरे दिल में आता हो
आकर लिख दे मेरे दिल पर ...
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